सूचना का अधिकार जो 2005 में अधिनियम के रूप में लागू हुआ , जिससे आम जनता भी अब किसी भी विभागीय जानकारी को प्राप्त कर सकती है जो सार्वजनिक हो सकती है पर इसमें कई बार कानूनी दावपेच अड़चन भी बनते हैं और कई बार जनहित में भी नहीं आ पाए
ऐसा ही एक मामला प्रदेश में सामने आया जब एक सूचना मिलने से असंतुष्ट होने के चलते मामला सूचना आयुक्त तक पहुंचा दरअसल आर टी आई एक्टिविस्ट पवन कुमार बंटा की एक अपील जिसमें सूचना मांगी गई कि जिसमें ग्रेटर शिमला में वाटर सप्लाई, बिल्स तथा सीवरेज आदि संबंधित सूचना मांगी गई थी और आरटीआई आवेदन को अन्य जन प्राधिकरणों को स्थानांतरित कर दिया, जिनके पास संभवतः मांगी गई सूचना है लेकिन संतोषजनक जवाब ना मिलने पर जब मामला स्टेट इंफॉर्मेशन कमीशन पहुंचा

Oplus_131072
तो वहां
दोनों पक्षों को विस्तार से सुना गया। जन सूचना अधिकारी ने सुनवाई के दौरान बताया कि सभी बिलों का विवरण पहले ही दे दिया गया है, लेकिन इस संबंध में वसूली प्रणाली का विवरण तैयार नहीं था , जन सूचना अधिकारी का ये बयान सही नहीं पाया गया क्योंकि पानी के बिलों का विवरण जन सूचना अधिकारी के पास है और नगर निगम शिमला से पानी के बिलों के बकाया का तुलनात्मक विवरण अपीलकर्ता को वसूली प्रक्रिया के विवरण के साथ प्रदान किया जाना चाहिए,
जो कि अपीलकर्ता ने अपने आरटीआई आवेदन में दिनांक 20.12.2024 में उल्लेख किया था
जन सूचना अधिकारी ने आगे बताया कि उन्होंने हाल ही में कार्यभार संभाला है, इसलिए उन्होंने अपीलकर्ता को आवश्यक जानकारी प्रदान करने के लिए एक और अवसर देने की अपील की थी लेकिन यहां आरटीआई मामलों को संभालने वाले अधिकारी की जगह उसका डीलिंग हैंड पीआईओ की ओर से बोल रहा था,

Oplus_131072
जिसे सूचना आयुक्त एस. एस. गुलेरिया द्वारा
चेतावनी दी गई कि भविष्य में आरटीआई मामलों का वे प्रतिनिधित्व न करे क्योंकि वह निगम में आउटसोर्स कर्मचारी है , और उसे सुनवाई के दौरान पीआईओ से बात करने/सहायता करने की अनुमति नहीं ही सकती
और 20.12.2024 के आरटीआई आवेदन के अनुसार जानकारी इस आदेश के पारित होने से 15 दिनों की अवधि के भीतर सही और प्रामाणिक रूप में प्रदान करने का निर्देश भी दिए,और इस तरह के मामलों में आगे भी किसी आउटसोर्स कर्मचारी को सूचना देने का तथा आर टी आई मामलों को संभालने से इंकार किया जो सूचना आयुक्त एस. एस. गुलेरिया का एक बड़ा फैसला माना गया